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साधु की याद…

पुरे दिन मे आपको साधु भगवंतो की याद कब आती है?

सुबह बिस्तर मे से उठने के बाद यह विचार तक आया की- धन्य है महात्मा को जो life time संथारे पर ही सोते है। जीवन भर मे कभी दीक्षा के बाद डनलोप या मखमल की गादी का उपयोग नही करने वाले है।

बाथरूम मे आधे घंटे तक जब शावर के निचे ठंडे पानी से नहाते वक्त कभी ऐसा भाव आया की धन्य है इन साधु भगवंत तो जीवन भर कभी भी कच्चे पानी का स्पर्श भी नही करेंगे बल्कि गर्म पानी से भी स्नान ही नही करेंगे- ऐसे साधु भगवंतो को मै याद करता हूँ? जिन्होंने गजब का त्याग- धर्म जीवन मे उतारा है..

हम अलमारी को खोलते है, तो कपडो के ढेर मे से ” आज मै क्या पेहँनूगा?” यह निर्णय लेने के लिए 30 मिनट बिगाड़ देते है। तब हमे यह विचार आता है कि धन्य है मुनि भगवंतो को उनको तो पुरे जीवन मे कपडो की तो कोई choice ही नही करना है। दीक्षा ली तब से अन्तिम समय तक एक ही कपडे -” व्हाइट & व्हाइट”।

डाइनिंग टेबल पर जब हम भोजन करने बैठते है और जब बहुत सारी आईटम हमारी थाली मे परोसी जाती है तो उस समय यह विचार आता है क्या ? – धन्य है इन गुरु- भगवंतो को जो घर- घर जाकर जो मिलता है उसी भिक्षा से चला लेते है। कम मिला अगर तो वह तपोवृद्धि करके निभा लेते है परंतु फरियाद की तो कभी कोई बात ही नही।

घर से बाहर निकलते ही पैरो मे चप्पल और जूते पहनकर कार मे बैठते ही कभी मुनि- भगवंतो को याद करा है ? कि धन्य है श्रमण भगवंतो को। चाहे कितनी भी गर्मी हो, सूर्य महाराजा ताप बरसा रहे हो पर वह तो हमेशा खुल्ले पैर ही चलते है। वह वैशाख का ताप हो या मगसर की ठंडी, पैदल ही चलते है। कभी भी गाडी मे बैठने की कोई बात ही नही होती है।

इस तरह अगर हम अलग- अलग नजरिये से भी दिन भर मे हम एकाद बार भी अगर श्रमण भगवंतो को याद करते है तो हमारा चारित्र मोहनिय कर्म कमजोर पडे बिना नही रहेगा।।

“संसार प्रवृति ऊपर खडा है। प्रवृति से ही स्नेह बढता है। स्नेह से ममता आती है। ममता आसक्ति कराती है। आसक्ति दुर्गति दिलाती है। दुर्गति के द्वार को जो कायम के लिए बंध करना है तो सर्वप्रथम प्रवृति बंध कर दो”

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