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शांति की प्रार्थना

भारत देश श्रद्धा से भरा-फुला देश है। यहाँ पर रोज सवेरा होता है और भक्त रोज भगवन के मंदिर में जात-जात की पूजा करते है। और भात-भात की प्रार्थना करते है।

किसी के गाड़ी, बंगले, फैक्टरी को देखकर मानव खुद भी गाड़ी, बंगले, फैक्टरी का मालिक बनने के सुनहरे सवप्न संजोने लगता है। और भगवान के पास इनकी याचना करने लगता है। बहुत कम विरले ऐसे होते है जो भगवान के पास जाकर शांति की याचना करते है।
ऐसे ही एक विरले भक्त ने प्रभु के पास जाकर प्रार्थना की-
I WANT PEACE

उस भोले भक्त की प्रार्थना सुनकर भगवान ने तथास्तु न कहते हुए बस इतना ही कहाँ- मै जैसा कहूँगा उसके जैसा तू करेगा तो तू जो चाहेगा वह तुझे अवश्य मिलेगा”। भक्त ने मस्तक झुकाकर कहा की- “आप जो कहोगे वह मै करने को तैयार हूँ।”
भगवान ने कहा की – सबसे पहले तू
I Want Peace में से ‘I’ को हटा दे
‘I’ = मै, मै यानी अभिमान।

जब तक यह अहंकार जीव में रहेगा तब तक उसे शांति नही मिलेगी। अहंकार हर एक संघर्षो का मूल है। रामायण, महाभारत जैसे महायुद्दो के मूल में अहम् के अलावा दूसरा कुछ भी नही हैं।
भक्त ने नतमर होकर प्रभु की वाणी को स्वीकारा। भगवान ने कहाँ की जिस तरह शांति को प्राप्त करने क लिए ‘I’ का त्याग करना है, ठीक उसी तरह से WANT का भी त्याग करना पड़ेगा।

Want यानि अपेक्षा, याचना जो हमे दुखी करने वाला कोई हैं तो वह अपेक्षा हमारे चित्त की शांति को हरण करने वाला कोई है तो वह है अपेक्षा। जब तक मन में अपेक्षा को ले कर चलोगे तब तक सुखी नही हो सकोगे। जरुरी नही की तुम्हारे मन की सर्व इच्छा पूरी हो जाये और जब पूरी नही होगी तो दुखी तो होंगे ही। भक्त ने भगवान की इस बात को भी अहो भाव से स्वीकारा।

अंत में भगवान ने उपसंहार निकालते हुये कहा जीवन में से
‘I’ और ‘Want’ निकल जाये
तो फिर बचता है only peace यानी शांति और
इस शांति का स्वामी तु बने ऐसी तुझे मेरी मंगल आशीष है।
भक्त को शायद यहाँ पर शांति का महासागर मिल गया। ऐसा आनंद प्राप्त हुआ।
याद रखना-
मुश्किले मानव को समृद्ध भले ही न बनाये
मगर समझदार जरूर बनाती हैं।।

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