एक बार बावीसवे तीर्थंकर श्री नेमिनाथ परमात्मा पद्मपुर नगरी में पधारे |
नगर की सीमा में पद्मवन नामक सुंदर बगीचा था | उसमे प्रभु का समवसरण रचाया गया | मीठी सुंगध की तरह चीटियों का सागर लहराये उसी तरह पद्मपुर नगर की आस्तिक – नास्तिक प्रजा समवसरण तरफ दोडी | नगर के राजा का नाम कलाकेली | मगधदेश का यह मालीक महापुन्यशाली था | पाचं लाख घोड़े तथा लाखों सैन्य उसकी आज्ञा में थे |
कलाकेली प्रभु की देशना सुनने पहुचे | उस दिन प्रभु ने श्रावक को कैसे कैसे दैनिक कर्तव्य अदा करने चाहिए उसका प्रकाशन किया | दो मुद्दे पर बहुत वजन दिया | एक ने तो जिनपुजा तथा दुसरे नम्बर पर चरित्र का मनोरथ | ये दोनों रोज रोज अवश्य करना चाहिए | प्रभु की वाणी का मेघनाद इस बात को लेकर लघुकर्मी ग्रहस्थो के ह्रदय तक पहुचं गया |
कलाकेली राजा को प्रभु की देशना बहुत पसंद आई | राजा प्रभु के चहरे को देखते है तथा ह्रदय में झनझनाटी का अनुभव करते है | जैसे की पिछले भव की कोई प्रीति, बिच का सुषुप्तकाल व्यतीत करके जाग्रत हो रही थी |
राजा ने प्रभु को पुछा : भगवंत, आप के दर्शन से मुझे इतना आनन्द कैसे हो रहा है और इस भव में मुझे इतना निष्कंटक राज्य किस तरह प्राप्त हुआ ?
कौनसा कर्म यहाँ असरकारक बनता है ? बताने की कृपा करे |
भगवन ने उनकी विनती स्वीकार की | देशना के प्रवाह को राजा के पूर्वभव की की तरफ मोड़ा | पिछले जन्म में तू धनचन्द्र नामक व्यापारी था | रमापुरी का रहने वाला था | उत्तम कुल में जन्म हुआ था , परन्तु जन्म से ही गरीबी ऐसी मिली की उसके शिकंजे में से कितने ही दशक बीतने के बाद भी तू बाहर निकल नही सका | कोई निश्चित व्यापार तेरे पास नही था | कभी तो छुट्टी मजदूरी करके पेट भरना पड़ता था |
एक बार तेरे नगर में मेरा आगमन हुआ | देवो ने समवरण की रचना की , नगर का राजा जितारी बड़ी पर्षदा के साथ मेरे पास आया | राजा के साथ आये हुये लोगो में तू भी सामिल था |
उस दिन देशना में दिपकपूजा के स्वरूप का तथा उसकी महिमा कितनी ज्यादा है उसका वर्णन हुआ | तीर्थंकर की स्वद्रव्य से पूजा करने वाला ज्ञान दीपक को तो प्रज्वलित करता ही है, अंत में मोक्षलक्ष्मी का भीं भोक्ता बनता है | देशना की यह ध्वनी तेरे गले के निचे उतर गयी |
तूने मेरे पास अभिग्रह किया की निरंतर दीपक पूजा करूंगा | इतनी शक्ति मेरे पास है | अभिग्रह लेकर तू वापस लोट गया | हर रोज पूरी तरह से जयणापूर्वक वीतराग भगवान की मूर्ति के सामने दीपकपूजा करने लगा |
इस तरह की गरीबी की अवस्था में थोड़े से भी स्वद्रव्य का सद्व्यय करके बहुत सारा पुण्यकर्म एकठ्ठा किया | समय के क्रमानुसार तेरी मृत्यु हुई, तूं पूर्वभव का धनचन्द्र, यहाँ मगध देश का स्वामी बना है |
प्रभु के साथ का पहले का जन्म का भक्त संबध जानने के बाद उसके ह्रदय में यही संबध अधिक दृढता के साथ वापिस संस्थापित हुआ | प्रभु के पास उसने सम्यक्त्व का स्वीकार किया | उसके बाद प्रभु की द्रव्य – भावभक्ति में निरंतर प्रवृत्त रहने लगा |