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क्रोधादि कषायो का मूल

कषायो को आत्मभूमि पर से उखाडने के लिए तत्पर बनते है? तब हम कषायो के मूल शोधते है? मूल से उखाडने के बाद ही वह आत्मभूमि पर उत्पन्न नही हो सकते है।अगर कषायो की जडे सलामत होगी तो वह बार बार उगे बिना नही रहेंगे।

थोड़े समय क्रोध नही करने से, मान धारन नही करने पर, माया को नही आचरने से, लोभ वृत्ति के त्याग से काम नही चलेगा। मात्र इन कषायो का उपशम( दबाने से) करने से आत्मा अकषायी नही बन जाएगी। आत्मा को अकषायी बनाने के लिए जडे उखाडनी पडेगी। इसलिए प्रशमरति कार यह कषायो का मूल बता रहे है जिसे हमे उखाड फैंकना है-

ममकार और अहंकार
यही कषायो का मूल है।

इन दोनो को अगर आत्मभूमि से उखाड फैका तो आपकी आत्मा अकषायी बनने की ओर तीव्र प्रयाण कर देगी।

माया और लोभ का मूल ममत्व है। क्रोध और मान का मूल अहंत्व है। यह दोनो की जोड बहुत गहरी आत्मभूमि मे गयी है। बरगद के वृक्ष को देखा है? उसकी जडो को देखा है? वह कितनी जमीन मे अंदर तक गयी होती है तब जाकर वृक्ष इतना विशाल बनता है। उससे भी कई गुणा ज्यादा और व्यापक ममत्व और अहंत्व की जडे आत्मभूमि मे फैली है।

यहाँ पर कषायो का मूल बता दिया है। अब इसे काटना है या रखना है हमारी इच्छा पर निर्भर है। जब जब अहंकार पर हम सवार होते है तब तब क्रोध और मान का जन्म होते है। और अहंकार अन्नत संसार को बढाता है।

जब जब हमे ममत्व होता है तब तब माया और लोभ का जन्म होता है। और हमारी आत्मा को ममत्व द्वारा विनाश की ओर ले जाती है।

तो बस हमे ममत्व और अहंकार को त्याग कर उपशम को छोड़कर क्षायिक की ओर प्रयाण करना है।।

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