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मान से होता है विनाश

विनय हमे अच्छा नही लगता है रंक जीवन को वैभवशाली बनाने वाला विनय हमे पसंद नही हो तो शायद हम मान के रस्ते पर चल जाते है जहाँ पर वैभवशाली वर्चस्व रंक में बदल जाता है। मान के पहाड़ो के निचे वह मुलायम विनय की घास दब जाती है।

अगर हमे विनय की विश्वमंगला बरसात में स्नान करना अच्छा नही लगता है। तो आधार हीन अभिमान के आकाश में उड़ते रहो।

अभिमान की पाशवी वृत्तियां विहार संहार करके जीवन को श्मशान भूमि बनाकर उस पर नृत्य करती है। परन्तु याद रखना चाहिए की श्मशान भूमि पर कभी इंसान को आनंद नही मिल सकता है। उसे जीवन में आनंद लेना है तो झुकना पड़ेगा। ” अकड़ना तो मुर्द की पहचान है.”

हमे हमारे जीवन में कुछ परिवर्तन ,लाने होंगे। अभिमान को छोड़कर विनय को अंगीकार करना होगा तभी जीवन का विकास हो सकता है।

गौतम स्वामी लब्धि निधान बने उसके पीछे एक मात्र कारन था की वीर प्रभु के प्रत्ति विनय भाव। अभिमान को छोड़ा तो इंद्रभूति से गौतम बन गए। प्रभु के प्रियतम बन गए।

जब तक अभिमान था इंद्रभूति के पास एक भी लब्धि का नामों निशान नही था पर जैसे अभिमान गया गौतम स्वामी को 48 लब्धि की वर माला उसके गले में आ गयी।

“विनय मूलो धम्मो” धर्म का मूल विनय है और आप अगर अर्हत ( अरिहंत) परमात्मा के वचनो को मानते है। तो मान कषाय का सहारा मत लो मान से तुम्हे कुछ नही मिलने वाला है।

मान से कभी सम्मान नही मिलता है। विनय धर्म को जीवन में उतारो मान सम्मान सब कुछ मिलेगा। विनय तो मोक्ष पद तक को देने का सामर्थ्य रखता है। बस इस विनय को आत्म सात करो।

जिन्दगी कभी आसान नही होती है
इसे आसान बनाना पड़ता है।
कुछ नज़र अंदाज़ करके तो
कुछ बर्दाश करके।

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