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कषायो का फल

प्रशमरति ग्रंथ मे काहा है कषायो के परवश हुआ है। जीव भयंकर आपत्तियो का भोग बनता है।इन अनर्थो का नाम मात्र भी कौन कहने मे समर्थ है?

कषायो के हाथ से भयंकर हार खाये हुए जीवात्माओ की दुर्दशा का थोडासा भी विचार हमने करा है?

तीन भुवन मे प्रभुत्व धराने वाले कषाय इस संसार मे कैसा कहर डा रहे है? संसार मे परिभ्रमण करते जीव कषायो के सहारे जीवन जीते है। उनके बिना जीवन जी ही नही सकते है। ऐसी कषायो की अधीनता स्वीकार करके जीव बेफाम क्रोध, मान, माया, लोभ करते है। फिर भले इसकी भयंकर पीडा, वेदना, यातना को भोगते है जीव इसमे कषायो को अपराधी समझते ही नही है। कषायो के कारण ही मै दुःखी हूँ। आपत्ति मे हूँ। इस बात को मानने के लिए तैयार ही नही होते है। कषायो ने जाने जीवो पर जादू न करा हो। दुःखो के दावानल के बीच मे भी कषायो से चिपके रहते है।

जीव खुद के दुःखो का आपत्ति का कारण दुसरो को ही देता है। उस व्यक्ति ने मुझे दुःखी करा है। बस दुःखो का दोषारोपण अन्य जीवो पर करना और कषायो की शरणागति स्वीकारना। उसने मुझे दुःख करा है मै उसे नही छोडूंगा- यह क्रोध कषाय। वह मुझे क्या समझता है? उसने मेरा अपमान करा है, देखलुंगा उसे- यह मान कषाय। उसने मुझे फसाया है मै उसे ऐसा फसाऊगा की जीवन भर मुझे याद करेगा- यह माया कषाय। उसने मेरी सम्पति को नुकसान पहुंचाया है मै उसकी सारी संपत्ति हडप लुगा- यह लोभ कषाय।

कषायो के विचार, कषाय युक्त वचन और कषाय युक्त प्रवृतिया उसे प्रिय लगती है। करने जैसी लगती है। वह करने जाता है और दुखी हो जाता है। और भयंकर अनर्थ का शिकार हो जाता है।

इन कषायो के चक्रव्यूह मे ऐसा फसता है कि इसमे से निकल ही नही पाता है। और तिर्यच योनि नरक योनि का अतिथि बन जाता है। और फिर दुर्गति मे हजारो करोडो वर्षो तक लगातार घोर भयंकर दर्दनाक कष्टो को भोगता है।

जहाँ मात्र और मात्र पिडा है, दर्द है, यातना है। सुबह से शाम 24 घंटे बस यातनायो को सहनकर आर्त ध्यान और रोद्र ध्यान उलझ कर रह जाता है। अन्नत संसार को बढा लेता हे।

बस इन कषायो के फल को जानकर हमे समभाव मे स्थिर होना है ।।

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