भारत का मूल अंश आर्य संस्कृति से है। सबसे प्रचीन संस्कृति मे यह अग्रणी है। एक समय हमारे यहा गुरुकुल वास मे बालक के भविष्य का निर्माण होता था।
नालंदा, तक्षशिला यह विश्व की प्रख्यात अभ्यासशाला रही है। जब मेडिकल साइंस का जन्म भी नही हुआ था तब यहा शल्य चिकित्सा सिखाई जाती थी।
शून्य की शोध करके आर्यभट्ट ने विश्व को गणित की भेट दी। हमारी इस भूमि पर तो राम और कृष्ण के समय से वीर युद्धा होते आये है। उस बालक मे अगर वीरता, दृढ़ता, धैर्यता, निडरता, साहसिकता आदि गुणो का विकास होता है तो उसके एक मात्र कारण है। और वह गुरूकुल वास मे रहकर अभ्यास पद्धति को जाता है। वसिष्ठ, द्रोणाचार्य, चाणक्य, चरक आदि मुनियो ने निस्पृहता के साथ उज्ज्वल भविष्य को घडा है। इन मुनियो, संतो ने शस्त्र का गहन अभ्यास कराया तो शास्त्रो की शिक्षा देकर वीर युद्धा बनाया है। कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य ने कुमारपाल को उदायन मन्त्री के पास राज शिक्षा सिखाई। तो उन्होंने खुद उसे धर्म शिक्षा देकर एक राजा मे सारे श्रावको के गुणो का अवतारण करा। भोग मे योग का मार्ग बताया।
विश्व की एक मात्र आर्य संस्कृति ऐसी है जिसमे बालक के अंदर सर्व गुणो को विकसित किया जाने का प्रयत्न किया जाता है।
यहाँ जब भी विपत्ति समाज पर आती है तो कालका चार्य शास्त्रो को छोडकर शस्त्र को धारण करके समाज का रक्षण करा। छः काय के जीवो को अभय दान देने वाले महात्मा ने भी संघ रक्षा के लिए तलवार को उठाकर दुष्टो से संघ का रक्षण करा।
तो चाणक्य ने चन्द्रगुप्त जैसे बालक को तैयार कर नंदो के राज्य को समाप्त करके साम्राज्य को स्थापित किया।
जब जब संस्कृति रक्षको ने शस्त्र और शास्त्र दोनो का साथ मे प्रयोग किया है तब तब देश निर्माण हुआ। इतिहास का सर्जन हुआ। समाज को आबादी का अहसास हुआ ।।