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विपत्ति की पाठशाला का विद्यार्थी

एक अमीर ने बहुत बडी पार्टी रखी थी। पार्टी मे बडे बडे अधिकारीयो को अमीर ने अमंत्रण दिया था।

पार्टी मे भोजन की विविध स्वादिष्ट वानगिया बनने वाली है इसलिए निष्णात रसोईयो को किया गया है। और पार्टी का समय हो गया।

पार्टी मे स्वादिष्ट भोजन का आस्वाद लते लेते अन्दर ही अन्दर आपस मे बाते करने लगे।

वही किसी मेहमान ने ऐतिहासिक प्रसंग को छेड दिया। आपस मे बात करने वालो का सभी लोगो का ध्यान उस तरफ गया और बातो को बंध कर ध्यान से प्रसंग को सुनने लगे।

प्रसंग बडा ही रोचक था पर एक मेहमान ने बीच मे से ही टीका करना शुरू कर दिया जिससे संलग्न वार्ता का प्रवाह रूक गया। फिर उस ऐतिहासिक घटना के लिए दो अतिथियो के बीच मे मतभेद हो गया।

इसमे दो पक्ष हो जाने से पार्टी का खुशमिजाज वातावरण खराब हो गया। और परोस्कारी करते करते वेटर के मन मे दुःख हुआ।

वह परोसकरी करते करते अटक गया। और सबका ध्यान खिचते हुए विनय भरे स्वरो मे बोला- महानुभावो! छोटे मुह बडी बात कर रहा हूँ। इस दुष्टता के लिए क्षमा करना।

इस ऐतिहासिक प्रसंग की सच्ची घटना तो इस प्रकार थी अगर आपको शंका हो तो इतिहास के इन प्रमाणभूत ग्रन्थो को देख सकते हो। तो यह विवाद टल जाएगा।

उस अमीर ने नौकर की बात सुनकर ग्रन्थालय मे से ग्रन्थ मंगवाया और निरिक्षण करा तो नौकर की बात बिलकुल सही निकली।

उस नौकर को खुब खुब धन्यवाद देते हुए इतिहास के विद्वान ने पुछा की तेरा ज्ञान बडा ही गहन है। तुने किस विद्यालय से शिक्षण प्राप्त किया?

विनम्र स्वरो मे नौकर बोला- मेने विश्व की सबसे बडी युनिवर्सीटी मे अभ्यास किया है। और उस युनिवर्सीटी का नाम विपत्ति की पाठशाला है। समस्याओ की पाठशाला ने ही मेरी जीवन को घडा है।विपत्तियो मे झुकना नही और उसका सामना करते ही मै आगे बडा हूँ। दुसरी सारी काॅलेजो का अभ्यास तो एक time limit मे पुरा हो जाता है। इसका अभ्यास तो life time चलता रहता है।

इस विपत्ति की विद्यापीठ के आजीवन अभ्यासी थे प्रजातंत्र पद्धति के जन्म दाता दार्शनिक रसो।।

गरीबी के समय मे उन्होने वेटर की नौकरी भी स्वीकारी थी।।

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