विश्व में माँ के योगदान को लोगों के समक्ष रखने वाला एक चिट्ठा।
अजन्मी बिटिया के मन की पुकार, सपने में आई।
ठुमकती-ठुमकती, रुनझुन करती,
शरमाई, सकुचाई नन्ही-सी परी
धीरे से बोली माँ के कान में,
माँ! तू मुझे जन्म तो देती।
मैं धरती पर आती, मुझे देख तू मुस्कुराती, तेरी पीड़ा हरती,
दादी की गोद में खेलती-मचलती,
घुटवन चलती, ख़ुशियों से बाबुल की मैं झोली भरती,
पर जन्म तो देती माँ! तू मुझे जन्म तो देती।
मैयाँ-मैयाँ चलती मैं, बाबुल के अँगना में
डगमग डग धरती, घर के हर कोने में फूलों-सी महकती।
घर की अँगनाइयों में रिमझिम बरसती,
माँ-बापू की बनती मैं दुलारी,
पर जन्म तो देती माँ! तू मुझे जन्म तो देती।
तोतली बोली में चिड़ियों को बुलाती,
दाना चुगाती उनके संग-संग मैं भी चहकती,
दादी का भी मन बहलाती,
बाबा की मैं कहलाती लाड़ली,
पर जन्म तो देती माँ! तू मुझे जन्म तो देती।
आँगन बुहारती, गुड़ियों का ब्याह रचाती
बाबुल के खेत पर रोटी पहुँचाती,
सबकी आँखों का बनती मैं सितारा,
पर जन्म तो लेती माँ! जन्म तो लेती मैं।
ऊँचाइयों पर चढ़ती, धारा के साथ-साथ
आगे ही आगे बढ़ती, तेरे कष्टों को
मैं दूर करती, तेरे तन-मन में
दूर तक उतरती, जीवन के अभावों को
नन्हे भावों से भरती, तेरे जीवन की बनती मैं आशा,
पर जन्म तो देती माँ! तू मुझे जन्म तो देती।
ओढ़ चुनरिया बनती दुल्हनियाँ
अपने भैया की नटखट बहनियाँ,
ससुराल जाती तो दोनों कुलों की लाज मैं रखती,
देहरी दीपक बन दोनों घरों को
भीतर और बाहर से जगमग मैं करती,
सावन में मेहा बन मन-आँगन भिगोती,
भैया की कलाई की राखी मैं बनती,
बाबुल के तपते तन-मन को छाया मैं देती,
पर जन्म तो देती माँ! तू मुझे जन्म तो देती।
माँ बनती तो तेरे आँगन को, मैं खुशियों से भरती
बापू की आँखों की रोशनी बनकर
जीवन में आशा का संचार करती,
तेरे आँगन का बिरवा बनकर
तेरी बिटिया बनकर माटी को मैं चन्दन बनाती,
दुख दूर करती सारे सुख के गीत गाती,
पर जन्म तो देती माँ! तू मुझे जन्म तो देती।
तेरे और बापू के बुढ़ापे की लकड़ी बनकर
डगमग जीवन का सहारा मैं बनती,
संघर्षों की धूप में तपते तन को मैं छाया देती,
उदास मन को देती मैं दिलासा,
पर जन्म तो लेती, मैं जन्म तो लेती माँ!
जन्म तो देती तू, मुझे जन्म तो देती- माँ।