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उत्साह से कार्य करने वालो के चरणो मे सफलता होती है

एक देश मे एक वृद्धशील्पकार रहता था। उसके हाथो मे उसके हाथ से बनी आकृति मे साक्षातकार का अनुभव होता था। परंतु उम्र उसका कार्य करती थी। अब वह पत्थरो को एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाने मे असमर्थ था।

उसके मन मे विचार आया मेरे पास शिल्पकला हे यह मेरे जी के साथ समाप्त नही होनी चाहिए। मुझे यह कला दुसरो को सिखा देना चाहिए। ताकि यह कला युगो युगो तक जीवन्तर रहे।

इस विचार के साथ ही वृद्ध शिल्पकार ने एक शिल्पशाला खोलने का निर्णय किया। और शिल्पशाला खोलने का कार्य प्रारंभ कर दिया। उस देश मे उस वृद्ध शिल्पकार की मेहनत रंग लाई और एक खुबसूरत शिल्पशाला start हो गई। और वहाँ पर बच्चे शिल्प विद्या सिखने लगे।

सभी विद्यार्थीयो को वह वृद्ध शिल्पकार बडे ही ध्यान और एकाग्रता से शिल्प विद्या का अभ्यास कराता था। सभी को बडी सूक्ष्मता से शिल्प विद्या के गुरु सिखाता है। उस शिल्पशाला नाम प्रख्यात होने लगा। बहुत सारे बच्चे दूर दूर गाँव से शिल्प विद्या वहाँ सीखने आने लगे।

शिल्पशाला अच्छी चल रही थी। तभी वहाँ एक बच्चा शिल्पकला सीखने को आया। उस बच्चे ने जिस दिन से शाला मे प्रवेश किया उसी दिन से उसने उस वृद्ध शिल्पकार का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने लगा था। वृद्ध शिल्पकार भी उसके ऊपर विशेष ध्यान रखते थे। इससे अन्य students को लगने लगा की शिल्पकार हमारे साथ भेदभाव कर रहे है।

शिल्पशाला मे यह बात आग की तरह फैलने लगी। और शाल मे students मे असंतोष भी नजर आने लगा। पर यह बात शिल्पकार को बोलने किसी की भी ताकत नही हो रही थी।

एक दिन शिल्पशाला मे पढने वाले कुछ पैसे वाले students शिल्पकार के पास गये और हिम्मत के साथ उन्हे बोला की उस लडके पर आप ज्यादा ध्यान देते है और हम पर कम ध्यान देते है जबकि शाला मे fees तो सभी बराबर देते है तो आप ऐसा भेदभाव वाला व्यवहार क्या करते है?

शिल्पकार ने कहाँ पहले तुम मेरी प्रशनावली का उत्तर दो फिर मै तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूंगा। शिल्पकार ने पुछा- अभी समय क्या हुआ है? शिल्पकार को students उत्तर दिया संध्याकाल का time है। फिर दुसरा पोश्प पुछा- सारे students कहाँ है? उसने कहा सारे बच्चे मेदान मे खेल रहे है। फिर से शिल्पकार ने पुछा – वह लडका अभी कहा पर है? उस बच्चे ने कहा वह तो हर समय शिल्पशाला मे ही रहता है। अभी वही कुछ आकृति बना रहा होगा। वह कभी भी शिल्प से बोर नही होता है।

उस शिल्पकार ने कहा यही कारण है उसकी ओर ज्यादा ध्यान जाने का। एक रात्रि को सारे विद्यार्थी सो गए थे। शिल्प भवन मे वह अकेला लडका मोमबत्ती के मंद प्रकाश मे पत्थर पर कुछ आकृति बना रहा था। मेने उसे कहा- बेटा! तू थक गया होगा। जाकर के अब तू सो जा। तो उस बालक ने जवाब दिया- अगर मे सोता हू तो मुझे थकान लगती है। शिल्प के कार्य मे तो मुझे उत्साह आता है। मै थकता ही नही हूँ।

उस समय वृद्धि शिल्पकार ने बोला- बेटा ! तू मुझसे भी महान शिल्पी बनेगा। क्योंकि तू हर कार्य उत्साह से करता है। और उत्साह की सफलता को इन्सान की झोली मे डालता है। फिर भविष्य मे वह बालक दुनिया का महान शिल्पकार एन्छेलो मिथ्युम बना। जिस पर दुनिया को गर्व था।

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