Archivers

इस दोस्ती से मेरी इमेज तो नही बिगड रही है?

हे तारणहार!

इन्सान का परिचय उसके मित्र वर्ग पर से होता है। एक इन्सान था। उसके छः मित्र थे। उसके कैसे छः मित्र थे उसका हम यहा पर थोडा सा परिचय दे रहे है-

पहला मित्र तो हमेशा विष्टा का डिब्बा ले कर ही धुमता था। किसी भी समय उसे देखो तो सदैव उसके हाथ मे विष्टा का डिब्बा रहता था।

दुसरा मित्र महारोगी था। उसके शरीर मे तो रोगो का showroom था। कभी टाइफाइड से बेड पर रहता था तो कभी टी. बी. होरान करती है तो शुगर की तो fixed तकलीफ थी।

तीसरा मित्र पूर्ण रूप से वृद्ध हो चुका था। हाथ- पैर मे तो बिल्कुल भी दम नही था। सुबह से शाम तक ख- ख करता रहता था। मुह मे से कन्टीन्यू कफ निकलता रहता था।

चोथा मित्र जन्मो जन्म का भूखा था। हर समय – हर क्षण बस खाओ- खोओ करता रहता था। कभी भी ऐसा नही लगता था कि उसका पेट भरा है। 24hrs खाने का ही काम था

पाँचवा मित्र हमेशा मेला घेला रहता था। उसे कितना भी स्नान कराओ, तैयार करो, अप to डेट करो पर वह तो फिर से मेला घेला ही हो जाता था ।

छट्टा मित्र दगा खोर था। वह किसी भी समय धोखा दे सकता है। कभी भी दोस्ती को तोड सकता है।

अगर इन छः के साथ दोस्ती हो तो कितनी इमेज खराब होती होगी। कोई आकर इन छः के साथ दोस्ती छोडाए तो अच्छा।

इन छः जैसा ही मेरा एक जीगरजान दोस्त है। जिसके साथ मेरी चरम सीमा की दोस्ती है। मेरा शरीर! जो हर समय विष्टा के पोटले को लेकर घुमता है। किसी भी पल मे वह रोग को पकड के रोग ग्रस्त होकर बैठ जाता है। जरा रूपी डाकन तो जर्जरित कर देती है। आहार का मानो यह किडा है। हर पल यह खाने को तैयार रहता है। इसे कितना भी साफ करो, स्नान कराओ, सोप- पाउडर लगाओ पर यह फिर से मेला ही हो जाता है। और किसी भी समय मोत आ सकती है। और काया के साथ की दोस्ती टूट जाती है। साथ छोड़ जाती है।

इस काया के साथ मेरी दोस्ती होने से इमेज खुब बिगड रही है। मै इस बात को जानता हूँ पर क्या करू प्रभू! यह दोस्ती छुटती नही है।

आप तारणहार हो। प्रभु ऐसी कृपा करो की तीव्र उष्णा से मेरी देह आसक्ति को भाप बनाकर उडा दो। यही प्रथना है आप से विभु!

जब स्वार्थ छूटता है तो निस्पृहता प्रगट हो जाती है
April 5, 2016
प्रभु पर श्रद्धा तो एक वाक्य जीवन की राह बन जाता है।
April 6, 2016

Comments are closed.

Archivers