सत्य वह होता है जो मानव को महामानव बनाता है। सत्य का जो साथ छोड़ता है, वह दानव बनता है। सत्य निष्ठा के बिना कर्तव्यनिष्ठ नहीं बन सकते। सत्य बोलते वक्त या आचरते वक्त ह्रदय में भारीपन नहीं लगता पर असत्य बोलते वक्त भार लगता है। सत्य को याद नहीं करना पड़ता पर असत्य को याद करना पड़ता है।
सत्य वह सुख है, संतोष है, सत्य वह संस्कार है, सत्य वह संस्कृति है, सत्य वह प्रगति है। सत्य गरीब की हिम्मत है। सत्य वह जो आनंद है, सत्य वह जो कभी आंच नहीं आती, इसीलिए सत्य को ईश्वर भी कहा है। सत्य की राह पर चलने वाले ही सज्जन बन सकते हैं।
एक विद्यार्थी था, पढ़ाई में बहुत होशियार था। पहले के जमाने ऐसा था कि जो विद्यार्थी होशियार होते हैं उन्हें 2 कक्षाएं साथ में पढ़ाते थे, इसके साथ भी ऐसा ही हुआ, वह होशियार था इसीलिए उनके मां-बाप ने दोनों कक्षाएं साथ में ही करवाई। इसने भी एसएससी तक दो-दो कक्षाएं साथ में में ही पढ़ाई करी और परीक्षा दी।
9th तक तो कुछ प्रॉब्लम नहीं आई पर 10th में आया तब प्रॉब्लम आने लगी। पहले ऐसा था कि 16 साल से कम उम्र वाले 10th की परीक्षा नहीं दे सकते जब वह 10th में आया तो उसकी उम्र 14 साल थी। बड़ी मुसीबतें खड़ी हो गई, अब क्या करना। मां-बाप टेंशन में आ गए, अब दो साल वेस्ट जाएंगे।
मां-बाप और विद्यार्थी सलाह लेने के लिए स्कूल के टीचर के पास गए। टीचर ने ऐसी सलाह दी कि एसएससी के फॉर्म में 16 साल की उम्र लिख दो, वैसे भी यह फॉर्म मुझे ही check करना है, यह सब काम मुझे करना है। check करने के लिए कोई दूसरा नहीं आएगा, कोई फीस भी नहीं है।
विद्यार्थी को ऐसा असत्य बोलना अच्छा नहीं लगा, पर माता-पिता के फ़ोर्स के कारण वह कुछ बोल नहीं पाया और फॉर्म भरना पड़ा। एग्जाम भी हो गई, वह अच्छे मार्क्स से पास भी हो गया, परंतु उसने असत्य बोला वह भूल नहीं पाया। वह सत्य को ही अपना मूल्यवान धन समझ रहा था, उसे झूठ बिल्कुल पसंद नहीं था।
अब कॉलेज का समय आ गया, पर उसे रोज विचार आ रहा था कि मैंने झूठ का सहारा लेकर 10th पास करी है। आखिर मैं कॉलेज में फॉर्म भरते समय खुदने ही कॉलेज के प्रिंसिपल को सब बता दी। स्टार्टिंग से एंड तक सब बात बता दी और खुद को ही सजा करने की बात कर दी। प्रिंसिपल उस विद्यार्थी के सामने देख रहे थे कि इसने छोटे से बच्चे में कितनी सत्यप्रियतता है। यह बात प्रिंसिपल को स्पर्श कर गई। प्रिंसिपल ने कहा कि तुमने असत्य का सहारा लेकर एग्जाम दी वह सही है, पर यह असत्य भी तो तेरे अच्छे के लिए ही हुआ है। तू होशियार है और तूने सफलता प्राप्त कर ली है, इस बात को मन में सोचनेे की आवश्यकता नहीं है, और ये असत्य प्रायश्चित भी हो गया है क्योंकि तूने यह सामने से कबूल करा है। यह सब देखते हुए आपको किसी भी प्रकार की सजा देने की आवश्यकता नहीं है। रियल में तूं तो सत्यवादी ही है। अब जा तू शांति से पढ़ाई कर।
प्रिंसिपल ने उनको माफ भी कर दिया पर विद्यार्थी मन से भूल नहीं पाया। कॉलेज भी शुरू हो गए पर पढ़ाई में मन नहीं लगा, 1 महीने तक वह सो नहीं पाया। एक ही बात दिमाग में चलती कि मैंने असत्य का सहारा लेकर सफलता प्राप्त की। आखिर एक दिन खुदने ही सोचा जितना समय का सहारा लिया इतना प्रायश्चित ले लेना। मैंने 2 साल की गड़बड़ी करी है तो मैं 2 साल तक अभ्यास करना छोड़ दू। यही मेरा असत्य का प्रायश्चित होगा। ऐसा सोचकर कॉलेज छोड़ दिया। 2 साल तक अभ्यास नहीं किया। प्रयाश्चित पूरा होने के बाद ही वह पढ़ाई में जुड़ गया।
यह विद्यार्थी का नाम था “अश्विन कुमार दत्त” आगे वह बंगाल के बड़े और महान व्यक्ति हुए।