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रज्जा साध्वी ने सचित्त पानी पीया

रज्जा साध्वीजी को कोढ़ रोग हो गया था। एक साध्वीजी ने उससे पूछा कि यह रोग आपको कैसे हुआ? तब उसने कहा कि अचित ( उबला हुआ ) पानी पीने से गर्मी के कारण यह रोग हुआ है। इस प्रकार तीव्र भाव से असत्य बोल दिया और स्वयं की वास्तविकता छिपायी, क्योंकि वस्तुतः अशाता- वेदनीय कर्म – के उदय से तथा अति गरिष्ठ भोजन से पाचन क्रिया बिगड़ जाने के कारण अजीर्ण से यह रोग उत्पन्न हुआ था । गुरुदेव द्वारा इस प्रकार अचित्त पानी का जवाब मिलने पर दूसरी साध्वियों ने भी अचित्त पानी पीना छोड़ दिया ।

उनमे से एक साध्वीजी ने अपने मन को दृढ़ रखा । उन्होंने विचार किया कि अरिहंत भगवान का संयम मार्ग ऐसा है कि उसका पालन करने से रोग आता ही नहीं। रोग तो असमाधि का कारण है। रोग आये या बढ़े, तो उससे तो असमाधि होती है। उस असमाधि को प्रोत्साहन मिले, ऐसा भगवान बतायेंगे ही क्यों ? उस साध्वीजी के खून की बूंद – बूंद में भगवान के शासन की श्रद्धा उछल रही थी । वह दूसरी साध्वियों को अनेक रीति से समझती थी, परन्तु कोढ़ रोग के भय के कारण दूसरी साध्वियाँ समझती नहीं थी । इसलिए उस छोटी साध्वीजी को खूब पश्चाताप हुआ। अरे प्रभो ! मैंने अनादेय नामकर्म वगैरह कैसे अशुभ कर्म बांधे हैं ? जिससे सच्ची बात समझाने पर भी ये साध्वियाँ समझती नहीं हैं ? इस प्रकार पश्चाताप और आत्म-निंदा , काउस्सग्ग आदि करते करते उसे केवलज्ञान हो गया । केवलज्ञानी की महिमा करने के लिए देव- देवियाँ आई । दूसरी साध्वियों को विचार आया कि अरर ! हमने बड़ी भूल की है । उन्होंने केवलज्ञानी के पास आलोचना कर प्रायश्चित लेकर आत्मशुद्धि कर ली । परन्तु रज्जा साध्वी आलोचना लिए बिना मर कर अनंत भव भ्रमण करने वाली बनी ।

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