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मनुष्य प्रभु की अनुपम कृति,,,,,,,

एक बार एक गरीब किसान एक अमीर साहूकार के पास आया, और उससे बोला कि आप अपना एक खेत एक साल के लिए मुझे उधार दे दीजिये। मैं उसमें मेहनत से काम करुँगा, और अपने खाने के लिए अन्न उगाऊंगा।

अमीर साहूकार बहुत ही दयालु व्यक्ति था। उसने किसान को अपना एक खेत दे दिया, और उसकी मदद के लिए 5 व्यक्ति भी दिए। साहूकार ने किसान से कहा कि मैं तुम्हारी सहायता के लिए ये 5 व्यक्ति दे रहा हूँ, तुम इनकी सहायता लेकर खेती करोगे तो तुम्हे खेती करने में आसानी होगी।

साहूकार की बात सुनकर किसान उन 5 लोगों को अपने साथ लेकर चला गया, और उन्हें ले जाकर खेत पर काम पर लगा दिया। किसान ने सोचा कि ये 5 लोग खेत में काम कर तो रहे हैं, फिर मैं क्यों करू? अब तो किसान दिन रात बस सपने ही देखता रहता, कि खेत में जो अन्न उगेगा उससे क्या क्या करेगा, और उधर वे पाँचो व्यक्ति अपनी मर्जी से खेत में काम करते। जब मन करता फसल को पानी देते, और अगर उनका मन नहीं करता, तो कई दिनों तक फसल सुखी खड़ी रहती।

जब फसल काटने का समय आया, तो किसान ने देखा कि खेत में खड़ी फसल बहुत ही ख़राब है, जितनी लागत उसने खेत में पानी और खाद डालने में लगा दी खेत में उतनी फसल भी खेत में नहीं उगी। किसान यह देखकर बहुत दुखी हुआ।

एक साल बाद साहूकार अपना खेत किसान से वापिस माँगने आया, तब किसान उसके सामने रोने लगा और बोला आपने मुझे जो 5 व्यक्ति दिए थे मैं उनसे सही तरीके से काम नहीं करवा पाया और मेरी सारी फसल बर्बाद हो गयी। आप मुझे एक साल का समय और दे दीजिये मैं इस बार अच्छे से काम करूँगा और आपका खेत आपको लौटा दूँगा।

किसान की बात सुनकर साहूकार ने कहा- बेटा यह मौका बार बार नहीं मिलता, मैं अब तुम्हें अपना खेत नहीं दे सकता। यह कहकर साहूकार वहाँ से चला गया, और किसान रोता ही रह गया।

यही कहानी मनुष्य जाति पर भी लागू होती है ! वो कैसे ,,,,,,,

वह दयालु साहूकार “भगवान” हैं। गरीब किसान “हम सभी व्यक्ति” हैं।
साहूकार से किसान ने जो खेत उधार लिया था, वह हमारा “शरीर” है।

साहूकार ने किसान की मदद के लिए जो पांच किसान दिए थे, वो है हमारी पाँचो इन्द्रियां “आँख, कान, नाक, जीभ और मन”!

भगवान ने हमें यह शरीर अच्छे कर्मो को करने के लिए दिया है, और इसके लिए उन्होंने हमें 5 इन्द्रियां “आँख, कान, नाक, जीभ और मन” दी है। इन इन्द्रियों को अपने वश में रखकर ही हम अच्छे काम कर सकते हैं ताकि जब भगवान हमसे अपना दिया शरीर वापिस मांगने (मृत्यु ) आये तो हमें रोना ना आये।

विशेष ,,,, सत्कर्मों के द्वारा पुण्य कमाने के लिए ” इन्द्रियों का निग्रह : यानि उनको नियंत्रण में रखना आवश्यक है ! मानव शरीर “कर्म योनि ” है जिसमे किये गए कर्मों को “भुक्त योनि ” में जन्म लेकर भोगना पड़ता है ! यही मानव जीवन का सार है ! अतः “दैविक प्रवृतियों ” को अपने अंदर जीवंत करो और तप करते हुए ( इन्द्रियों को नियंत्रण में रखते हुए ) आध्यात्मिक जीवन जीएं !

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