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जनम जनम तु ही माँ – भाग 1

जितनी तमन्ना और तन्मयता से सुरसुन्दरी ने विधा अध्ययन किया था, कलाए प्राप्त की थी, उतनी ही तमन्ना और तन्मयता से उसने जैन धर्म के सिद्धान्तों का अध्ययन किया ।साध्वी सुव्रता ने वत्सलता भरे ह्रदय से उसे अध्ययन करवाया ।
विधार्थी की नम्रता और विनय गुरु के दिल में वत्सल्ल पेदा करते हैं ,करूणा का झरणा पेदा करते हैं। गुरु का वत्सल्ल और गुरु की करुणा विधार्थी से उत्साह एव उद्यम पेदा करती हैं।
अमर कुमार ने भी जैनाचार्य कमलसुरिजी के चरणों में बैठकर अध्ययन किया। विनय ,नम्रता वगेरह गुणों के साथ उसने तीव्र बुध्दि भी थी ।आत्मवाद का उसने गहरा अध्ययन किया ।कर्मवाद का विशद अध्ययन किया ।अनेकान्त वाद की व्यापक विचारधारा को अत्तस्थ बनाया ।सुरसुन्दरी को साध्वीजी सुव्रता ने कर्म का सिद्धान्त समझा कर पंचपरमेष्ठी के ध्यान की प्रक्रिया समझायी। आध्यात्मयोग की गहन बाते बतलायी। समग्र चोदह राज लोक की समुची व्यवस्था का ज्ञान दिया। मोक्षमार्ग की आराधना का क्रमिक विकास बताया । एक दिन अमर कुमार आचार्य श्री को वंदना करके उपाश्रय के सोपान उतर रहा था और सुरसुन्दरी आचार्य श्री को वंदना करने के लिए उपाश्रय के सोपान चढ़ रही थी। दोनों की आँखें मिली ।
‘ओह ….सुन्दरी? ‘
‘बहुत दिन बाद मिले नही ,अमर?’
‘हा…. अब कहा अपन एक पाठशाला में पढ़ाई करते हैं?अध्ययन करने के स्थान अलग -अलग हो गये तो मिलना भी इस तरह अचानक हो तो हो ।’
‘सही बात हैं तेरी अमर, पर….’
‘पर क्या ,सुन्दरी ?अध्ययन में तू इतनी डूब गई होगी की अमर तो याद भी नहीं आता होगा ….हे ना ?’अमर के चेहरे पर शरारत तेरी ।
सच बताऊ?… अमर ,एक भी दिन ऐसा नहीं जाता की तु याद न आता हो। अध्यन करते करते भी कभी बडीया तत्वचर्चा का मोका आ जाय तब तो तु बरबस याद आहि जाता है। मन में होता हैं….जाकर अमर को यह तत्वचर्चा सुनाऊ…. उसे कितना आनंद होगा ?
‘तो फिर मेरी हवेली पर क्यों नहीं आती ?अरे !माँ से मिलने के बहाने भी तो आ सकती हे तू ?’
‘आ तो सकती हू ….मेने इरादा भी किया था…. पर तेरी माँ की उपस्थिति में तेरे साथ बतियाने में मुझे….’

आगे की अगली पोस्ट में….

शिवकुमार – भाग 6
April 26, 2017
जनम जनम तु ही माँ – भाग 2
April 29, 2017

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