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कथा योशोदा कि व्यथा नारी की भाग 4
अभी तो माता त्रिशला भी नहीं थी! समग्र राजमहल सुमसाम हो गया था ! रात्री के समय में यशोदा एक ज़रूखे में आकाश की ओर नेत्र को स्थिर कर खड़ी थी ! ‘ कैसी थी वह लग्न की प्रथम रात ! कैसा था वर्धमानकुमार का निर्दोष वात्सल्य को बरसाता हाथ ! कैसा माता त्रिशला का अजोड़ वात्सल्य ! यशोदा अतीत…
कथा योशोदा कि व्यथा नारी की भाग 3
कुदरत ऐसे ही मान जाए ? विश्व के करोडो जीव कुदरत को कह रहे थे कि ‘ वर्धमानको जल्दी संसार में से बहार निकालकर उसे साधना कराओ ! कुदरत ! वह केवलज्ञान पाकर धर्म देशना दे तो ही हम करोडो जीव सच्चे सुखी बन सकेंगे ! कुदरत क्या सिर्फ एक यशोदा की विनंती स्वीकारे ? या विश्वे के करोडो जीवों…
कथा योशोदा कि व्यथा नारी की भाग 2
वर्धमान कुमार प्रियदर्शना को खिलाते, हाथमेँ उछालते , उसे खुदके हाथों से भोजन करवाते। परंतु यशोदा को स्पष्ट नजर आता था कि मेरे स्वामी यह सब केवल औचित्य के लिए करते है । उसमे स्नेहराग का अंश भी दिखाई नहीं देता । यशोदाको तो यह बात ही समझमें नहीं आती थी कि ,’ मुझे रोना चाहिए कि हंसना चाहिए ?’…
कथा योशोदा कि व्यथा नारी की भाग 1
मम्मी! ओ मम्मी ! बापुजी कहाँ गए? दो दिन से क्यों दिख नहीं रहे? बोलो ना मम्मी ! तू मौन क्यों है? क्यों मेरे साथ बोल नहीं रही?” छोटी सी राजकन्या निर्दोषभाव से पिता को मिलने की तीव्र इच्छा से माता को पूछ रही थी! वह थी भविष्य में विश्वपति बननेवाले वर्धमान कुमार की प्रिय लाडली प्रियदर्शना! हा सचमुच ही…