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श्री गोतमस्वामी के पूर्वजन्म 2
दूसरा भव : विशाल नदी में मछली के रूप में उत्पति कर्म की गति सच में विचित्र होती हे।थोडासा उत्कर्ष हुआ न हुआ वही पतन करा देती हे।हा एकाद छोटा सा निमित उसे मिलना चाहिये ।पाप भीरु बनकर तूने अनशन किया परंतु यह अनशन के दोरान तू दू:खभीरु बन गया।उसके सिवाय ऐसा क्यों बने? कहा मंगलसेठ का जन्म तथा कहा…
श्री गोतमस्वामी के पूर्वजन्म
स्कंदक नामक सन्यासी जब समवसरण की सीडिया चढ़ने लगा ।तब श्री महावीर प्रभुने श्री गोतमस्वामी को फ़रमाया की गौतम ।तुम्हारा मित्र समवसरण में आ रहा हे ।चारो और आष्चर्य की सिमा नही रही क्योकि इस स्कंदक सन्यासी को वे किसी तरह से भी नही पहचानते थे।आज पहली बार देखा हे तो भी प्रभु कह रहे हे की वे तुम्हारे मित्र…
सेठ जी दयालु
एक सेठ जी बहुत ही दयालु थे । धर्म-कर्म में यकीन करते थे । उनके पास जो भी व्यक्ति उधार मांगने आता, वे उसे मना नहीं करते थे । सेठ जी मुनीम को बुलाते और जो उधार मांगने वाला व्यक्ति होता उससे पूछते कि”भाई ! तुम उधार कब लौटाओगे ? इस जन्म में या फिर अगले जन्म में ?” जो…
पूर्वभव में इलाचीकुमारने आलोचना न ली…..
वसंतपुर नगर में अग्निशर्मा नामक ब्राहमण युवक रहता था । उसने अपनी पत्नी के साथ चारित्र लिया । परन्तु परस्पर मोह नहीं टूटा। उसकी भूतपूर्व पत्नी साध्वी ने एकबार ब्राहमणकुल का अभिमान किया । उसकी आलोचना लिए बिना ही वह मर कर देवलोक गई । मुनिश्री भी काल करके देव-लोक गये । वहां से मृत्यु पाकर अग्निशर्मा का जीव इलावर्धन…
चित्रक और संभूति चंडाल बने…..
जंगल से एक मुनि गुज़र रहे थे। रास्ता भूल जाने के कारण दोपहर के समय बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़े। गाय चराने के लिए आये हुये चार ग्वालों ने इस दृश्य को दूर से देखा।वे नज़दीक आये। मुनि बेहोश थे। होठ सूख गए थे। चेहरा कुम्हला गया था । तृषा का अनुमान कर उन्होंने गाय को दुहकर मुँह में…