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आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 45
समाधिमरणम! नदी के नीर की भाती जीवन का प्रवाह बह रहा है। वर्तमान काल प्रतिक्षण भूतकाल बनता ही जा रहा है। जो जन्म लेता है उसका अवश्य मरण होता है। जीवन के साथ मृत्यु की कड़ी जुड़ी हुई है। जन्म के साथ मृत्यु अनिवार्य है- परंतु मृत्यु के बाद जन्म वैकल्पिक है। संयम की उत्कृष्ट साधना- पूर्वक, पवित्र जीवन जिया…
आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 44
आर्यरक्षित ने कहा तुम्हारे आगमन का कोई चिन्ह करते जाओ। तब तत्क्षण इंद्र महाराजा ने उपाश्रय के दरवाजे की दिशा उल्टी कर दी। जो उपाश्रय पूर्व सन्मुख था, उसे पश्चिम सन्मुख कर दिया। इतना करके इंद्र महाराजा देवलोक में चले गए। थोड़ी देर बाद जब शिष्य आए, तो उन्होंने उपाश्रय के मुख्य द्वार के स्थान पर दीवार देखी- सभी को…
आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 43
देशना समाप्ति के बाद इंद्र महाराजा ने विज्ञप्ति करते हुए भगवंत से पूछा, भगवंत निगोद के इस प्रकार के सूक्ष्म स्वरूप को समझाने वाला कोई व्यक्ति भरत क्षेत्र में है? सीमंधर स्वामी भगवंत ने कहा, हां! भरत क्षेत्र में मथुरा नगरी में आर्य रक्षित सूरी जी विराजमान है, वे इस प्रकार से निगोद का वर्णन करने में समर्थ है। सीमंधर…
आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 42
आर्यरक्षित सुरिवर ने सोचा, ओहो! इतना मेधावी होकर भी यदि यह आगम श्रुत को भूल जाएगा तो फिर दूसरा कौन इस श्रुत को धारण कर सकेगा? सचमुच दिन-प्रतिदिन जीवो की श्रुत ग्रहण शक्ति घटती जा रही है, अतः मुझे समस्त आगमो का सरलतापूर्वक अभ्यास हो सके। इसके लिए कुछ प्रयत्न करना चाहिए! इस विचार कर आर्यरक्षित सुरिवर ने आगमो को…
आर्यरक्षित सूरिजी – भाग 41
संबंधीजनों ने पुष्यमित्र को अपने घर पधारने के लिए आमंत्रण दिया। गुरुदेव की अनुज्ञा से पुष्यमित्र अपने कुटुंबीजनों के घर गए और संयम जीवन के लिए योग्य बस्ती में ठहरे। वहां रहने पर संबंधीजनों ने स्निग्ध भोजन व घी आदि से पुष्यमित्र की खूब-खूब भक्ति की……. परंतु स्वाध्याय में लीन बने पुष्यमित्र को स्निग्ध भोजन में लेश भी आसक्ति नहीं…