Archivers

कथा योशोदा कि व्यथा नारी की भाग 19

वर्धमान अभी श्रमणार्य बने। पीछे देखे बिगर सिंह की तरह वन – जंगल की दिशा में चलने लगे। यशोदा का हृदय पुकारने लगा। “औ नाथ! एकबार मात्र अंतिम बार मेरी और दृष्टी डालो।मुझे स्नेह से देखो।आपका पल मात्र का स्नेहसभर दृष्टिपात मेरे लिए जीवन भर का उपहार होगा ! ओ स्वामी! मैंने आपके लिए बहुत बड़ा त्याग किया हैं! आपके आत्मोत्थांन के पथ पर मै कभी बाधक नही बनी!

मै अपने त्याग के बदले आपसे सिर्फ प्यार भरी निगाह की अपेक्षा कर रही हूँ! स्वामी ! आपको इसमे कोई कष्ट होने वाला नही है!

क्या आपको ऐसा भय लग रहा कि यदि आप मेरी तरफ देख लेगें तो यहाँ उपस्थित इन्द्र आपकी मजाक करेगे ! ओ नाथ ! यह भय निकाल दो, इन्द्र तो आपके अनोखे वैराग्यभाव को जानते है! उल्टा वे तो और खुश होंगे कि प्रभु ने आखिर करूणा बहाई!”

यशोदा उमंग के साथ इन शब्दों के चिंतन में थी ! उसे ऐसा लगा की अब वर्धमान मेरी तरफ देखने ही वाले है! परन्तु वाह रे नियति, तेरी गति भी बड़ी विचित्र है, वर्धमान तो नैंत्रो की निगाह को नीचे कर आत्मकल्याण के पथ पर अग्रेसर हो रहे थे! यशोदा की अंत: दिल की पुकार भी वे न सुन सके!

” ओ ! करूणामय देव ! विशव पर करुणा करने से पहले अपनी अर्धागिनी पर तो दया करो! यह घोर निष्ठुरता आपको अपनी साधना में कैसे सफल होने देगी!”  यशोदा का रोम रोम पुकार रहा था लेकिन अब उसके आर्तनाद को सुने कौन?

यशोदा खुद को रोक नहीं पाई!  प्रिया को लेकर महामुश्कील से वह वर्धमान के पीछे भागने लगी ! परन्तु शरीर में अभी शक्ति नहीं थी ! प्रिया को साथ लेकर वर्धमान को पकड़ना यशोदा के लिए अशक्य था ! 100- 200  चरण जाने के बाद यशोदा अटक गई ! धूल में वर्धमान के पवीत्र पगले गिरे दिखाई दे रहे थे!  ‘स्वामी के चरण नहीं, तो भी स्वामी के चरणों से स्पर्शी हुई धूल तो मिली!’ यशोदा नीचे बैेठ गई ! वह धूल को लेकर खुद के दो नेत्रो और और ललाट पर लगाई ! भारी हर्दय से वह राजमहल की ओर वापस लोटी !

 

सम्माप्त!!!

कथा योशोदा कि व्यथा नारी की भाग 18
February 8, 2017
प्रित किये तो दुख होय पाठ 1 – भाग 1
March 31, 2017

Comments are closed.

Archivers