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पिता मिल गये – भाग 2

सून्दरी के मानसपट पर साध्वी सुव्र्ता प्रकट हुए। उनके करुणासभर नेत्र दिखाई दिये। उनके मुँह में से शब्दों के फुल मनो झरने लगे : ‘सुंदरी,जिंदगी में केवल सुख की ही कल्पना बाधे रखना ! दुःख का विचार भी करते रहना !उन दुखो में धेर्य धारण करना | जीवात्मा के अपने ही बांधे हुए पापकर्मो के उदय से दुःख आता है | समता से दुखो को सहन करना | श्री नवकार महामंत्र के जाप से एव पञ्च परमेषठी भगवंतो के ध्यान से तेरा समताभाव अक्षुणा बना रहेगा !दुःख अपने`आप दूर होगे |सुख का सागर उछलने लगेगा | तेरी जीवन नौका भवसागर के तीर पार पहुँच जाएगी|’
सुर सुंदरी का दिल गद~गद हो उठा | साध्वीजी को उसने भाववंदाना की | उसकी शरण अंगीकार की |
सूर्य अस्ताचल कीओट में डूब गया | व्दीप पर अँधेरे की श्याम चादर फेलने लगी | सागर की तरंगो की गर्जना सुनायी देने लगी |
सुर सुंदरी किनारे पर की स्वच्छ रेती में बैठ गयी | उसने पद्नासन लगाया |दृष्ठि को नासाग्र भाग में स्थिर की और श्री नमस्कार महामंत्र का जाप प्रारम्भ किया |
उसे मालूम था की मन जब अस्वस्थ और अशांत हो तब जाप मानसिक नहीं वरन् वाचिक करना चाहिए | मृदु व् माध्यम सुर में उसने महामंत्र नवकार का उच्चारण करना चालू किया।
देह स्थिर थी| मन लींन था | महामंत्र के उच्चारण के साथ ही मंत्रदेवताओ ने उसके इर्दगिर्द आभामंडल रच दिया था| उसके मस्तक के आसपास तेज वर्तुल रच गया था | उसके हदय में परमेष्ठी भगवंतो हा आवतरण हुआ| वातावरण में पवित्रता का पुट मिल रहा था |
उस वक्त सुर सुंदरी के सामने अँधेरे में से एक आक्रति प्रकट होने लगी |

आगे अगली पोस्ट मे…

पिता मिल गये – भाग 1
June 1, 2017
पिता मिल गये – भाग 3
June 1, 2017

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