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मिलना अग्निशर्मा से! – भाग 10
अग्निशर्मा का मन, गुणसेन के विचारों में प्रवुत्त हो गया था । वह सोचते है -यदि मैं मना करता या उसका निमंत्रण ठुकरा देता तो उसे बहुत दुःख होता ….। उसे मेरे पवित्र आशय में संदेह होता । ‘यह अग्निशर्मा संन्यासी हो गया… ठीक है , परंतु उसके दिल में मेरे प्रति अब भी द्वेष है… इसलिए मेरे घर पर…
मिलना अग्निशर्मा से! – भाग 9
रानी ने पूछा : ‘वसंतपुर में उन महात्मा का बड़ा मान-सन्मान होगा ? ‘वसंतपुर में ही क्या ? समीप के सैंकड़ों गाँवों में उनके प्रति श्रद्धा और बहुमान है …। हजारों लोग उनके दर्शन करने के लिए तपोवन में आते हैं…। देवी, पाँच दिन के बाद उनका पारणा आयेगा । दिन बराबर यद् रखना । गलती न हो जाए… इसके…
मिलना अग्निशर्मा से! – भाग 8
‘छूटने का उपाय कल आप स्वयं कुलपति से ही पूछ लेना । वे सब कल अपने महल पर पधारनेवाले ही हैं ना ?’ ‘हां,…. सही बात है तुम्हारी देवी । कुलपति को कल ही पूछ लूंगा । परंतु कल उन महात्माओं की भक्त्ति-पूजा और आदर-सत्कार में किसी भी तरह की कमी नहीं रहनी चाहिए। ‘ ‘स्वामिनाथ, किसी भी प्रकार की…
मिलना अग्निशर्मा से! – भाग 7
राजमहल में जब पहुंचे तब दूसरा प्रहर पूरा हो चूका था। भोजन बगैरह से निवृत्त होकर राजा ने विश्राम किया। परंतु राजा को नींद आई नहीं । बार – बार वे गहरे विचारों में डूब जाते थे। महारानी वसंतसेना ने जान लिया : ‘आज महाराजा स्वस्थ नहीं है। किसी गंभीर विचार में डूबे हुए है । ‘ रानी आकर राजा…
मिलना अग्निशर्मा से! – भाग 6
हमेशा अन्य जीवों के गुण देखने चाहिए …, गुणानुवाद करने चाहिए और गुणवानों की प्रशंसा करनी चाहिए । किसी के दोष नहीं देखना , किसी के दोष प्रगट नहीं करना । सदैव प्रिय एवं सत्य वचन ही बोलने चाहिए । हितकारी और कल्याणकारी वचन बोलने चाहिए । मन में अच्छे विचार करना । परमात्मा का ध्यान करना । सत्पुरुषों का…