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राजा गुणसेन तपोवन में! – भाग 8
राजा ने कुलपति को दो हाथ जोड़कर भक्त्ति भाव से कहा : ‘महात्मन’, आपने मेरे पर महान कृपा की । मेरे पास इन दो विनीत तापसकुमारों को भेजा। आपके दर्शन कर के मैं सचमुच धन्य हो गया हूं । आपका यह तपोवन तो वास्तव में जीवों को परितोष देनेवाला ही है । इसका नाम सार्थक है । उपकारी , इस…
राजा गुणसेन तपोवन में! – भाग 7
राजा गुणसेन लतामंडप में सिंहासन पर जाकर बैठे। महामंत्री के साथ गपशप कर रहे हैं…… इतने में वहां यकायक दो सौम्य आकृतिवाले तापसकुमार आ पहुंचे। ‘महाराजा, ते कुशलमस्तु !’ तापसकुमारों ने राजा को आशीर्वाद दिये। उनके हाथ मे नारंगी और कोष्ठ के फल थे। वे फल उन्होनें राजा को भेंट किये। राजा सिंहासन पर खड़ा हुआ। तापसकुमारों को दो हाथ…
राजा गुणसेन तपोवन में! – भाग 6
राजा गुणसेन ने महामंत्री से कहा : ‘कल सबेरे…… प्राभातिक कार्यो से निपटकर मैं अश्वक्रीडा करने के लिए नगर के बाहर जाना चाहता हूं । तूम सबेरे पहला कार्य श्रेष्ठ घोड़ो को तैयार रखने का करना । तुम्हें भी मेरे साथ आना है ।’ ‘महाराजा, नगर के बाहर कुछ ही दूरी पर ‘सहस्त्राम्रवन’ नामक सुहावना उद्यान है ।’ महामंत्री ने…
राजा गुणसेन तपोवन में! – भाग 5
दिन के दो प्रहर पूरे हो गये थे । तीसरे प्रहर में स्नान-भोजन और विश्राम करके, चौथे प्रहर की शुरूआत में राजा-रानी ने इन्द्र सभा सी राजसभा में प्रवेश किया। राजसभा राजपुरूषों एवं महाजनों से खचाखच भरी हुई थी । कलाकारो के वृन्द अपनी अपनी जगह पर बैठ गये थे। सर्वप्रथम नगर के प्रमुख श्रेष्ठि ने खड़े होकर, महाराजा के…
राजा गुणसेन तपोवन में! – भाग 4
महाराजा का स्वागत करने के लिए 108 युवान, एक से एक सुंदर कपड़े पहनकर, विविध वाद्य बजाते हुए, नगर के बाहर जा रहे थे । उनके पीछे 1008 सोभाग्यवती-सुहागन स्त्रियां सिर पर स्वर्णकलश लेकर, मंगल गाती हुई चल रही थी । उनके बाद सुंदर सजाए -सवारे हुए 108 मदमस्त हाथी अपनी ही मस्ती में चल रहे थे । उसके बाद…