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शैतानियत की हद – भाग 5

चारो मित्रो को और तो कुछ कार्य था नहीं । बेबस होकर मजबूरी में तीन दिन तक घर मे बैठे रहना पड़ा था। गुणसेन ने मित्रो को योजना समझा दी। ‘हमे अब उसे राजमार्ग पर घूमाना नहीं है। किसी को हवा तक न लगे इस तरह, अग्निशर्मा को रथ में डालकर, नगर से चार कोस दूर जो महल है, उस…

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शैतानियत की हद – भाग 4

अग्निशर्मा ने विचार किया मुझे इस नगर को छोड़कर चले जाना चाहिए। परंतु, मुझे मेरे माता-पिता कही भी जाने नही देंगे । यदि उन्हें कुछ भी कहे बगैर मै चला जाऊँ तो मुझे हर पल प्यार करने वाले मेरे माता-पिता बेचारे दुःखी दुःखी हो जाऐंगे। मुझे भी उनकी याद तो सताएगी ही। क्या करूं ? नगर में रहता हूं तो…

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शैतानियत की हद – भाग 3

नही…. नही… मुझे यह अच्छा नही लगता ! जब मै मेरी प्यारी प्यारी माँ को आंसू बहाते हुए देखता हूं….मेरा कलेजा फट सा जाता है । जब जब गहरी उदासी के समुद्र में अपने पिताजी को डूबा हुआ देखता हूं, तब मुझे बड़ी पीड़ा होती है । पर क्या करूं ? कहां जाऊ ? मैं तो दुःखी होता ही हूं…

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शैतानियत की हद – भाग 2

पिताजी ने कहा – देवी, तुम्हारी बात सही है । यह एक सर्वसाधारण नियम है कि संतान में माता-पिता के रूप और आकार उतरे… परंतु हर एक नियम का अपवाद होता है कोई संतान ऐसी भी पैदा हो सकती है जिसमें माता-पिता के रूप… आकार न भी हो । अपना यह पुत्र गत जन्मों में बहुत घोर पाप कर के…

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शैतानियत की हद – भाग 1

दुःख में से द्वेष पैदा होता है…. और दुःख में से वैराग्य भी पैदा होता है । अग्निशर्मा के चित्त में वैराग्य पैदा हो गया । ‘लोगो की ओर से मुझे घोर अवहेलना सहन करना पड़ती हैं। असहन्न संयम व नारकीय वेदना सहना पड़ती हैं। कोई भी मुझे बचा नही पाता हैं। न मेरी माँ मेरी रक्षा कर पाती है….…

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