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कितनी ख़ुशी कितना हर्ष! – भाग 6

अमरकुमार एवं सुरसुरन्दरी। बचपन के सहपाठी आज जीवनयात्रा के सहयात्री बन चुके थे। पति-पत्नी बने हुए थे। सहजीवन जीनेवाले बन गए थे।अमरकुमार में यदि पराक्रम था तो सुरसुरन्दरी में नम्रता की शीतलता थी। अमरकुमार यदि पौरूषत्व का पुंज था तो सुरसुरन्दरी समर्पण की मूर्ति थी।अमरकुमार यदि मूसलाधार बारिश था तो सुरसुरन्दरी शुभ फलदा धरित्री थी। हवेली के दरवाजे पर बजने…

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कितनी ख़ुशी कितना हर्ष! – भाग 5

श्रेष्ठी धनावह ने शादी के प्रसंग को पूरी धामधुम से मनाने के लिये कई तरह की योजनाएं बना दी। अपने एकलौते बेटे की शादी वो जोर- शोर से और पूरे उत्सव के साथ करने के इच्छुक थी, और ऐसी इच्छा एक प्यार भरे एवं उदार पिता के दिल मे जागे यह स्वाभाविक था। जिस पर यह तो राजपरिवार मिला था,…

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कितनी ख़ुशी कितना हर्ष! – भाग 4

श्रेष्ठि धनावह की गगनचुम्बी हवेली भी आनंद के हिलकोरे से झूम रही थी । नगर के अनेक अनेक श्रेष्ठि धनावह सेठ को धन्यवाद देने के लिए आ-जा रहे थे। अमरकुमार को उसके अनेक मित्रों ने घेर लिया । बचपन के सहपाठी मित्र बचपन की घटनाएं याद कर कर के हँसी – मजाक कर रहे थे। अमरकुमार के दिल मे हर्ष…

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कितनी ख़ुशी कितना हर्ष! – भाग 3

सुरसुन्दरी की आखों से आंसू टपक ने लगे , भाव- विभोर होकर उसने पुनः पंचाग प्रणिपात किया । उत्तरीय वस्त्र के छोर से आँखे पोछ कर वह बोली : ‘गुरुदेव ,आपकी इस प्रेरणा को मै मेरे दिल के भीतर सुरक्षित रखूंगी। मेरी आपसे एक ही विनती है :परोक्ष रूप से भी आपके आशिर्वाद मझे मिलते रहे …… वैसी कृपा करें…

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कितनी ख़ुशी कितना हर्ष! – भाग 2

सुरसुन्दरी माँ के पास पहुँची। माँ! मुझे सोने के थाल में उत्तम फल, अच्छी मिठाई रखकर दे … में परमात्मा के मंदिर जाऊगी ।’ ‘ लौटते वक्त बेटी ,गुरुदेव के उपाश्रय में भी जाना गुरुदेव को वंदना कर आना ।’ ‘और वहाँ से साध्वी जी सुव्रता के उपाश्रय में जाकर लोटूगी ।’ रातिसुन्दरी ने थाल तैयार किया । दासी को…

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