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नदिया सा संसार बहे – भाग 5

सुख में तो बरस भी दिन बनकर उड़ जाते है… जल कर उड़ते कपूर की भांति  !  दिन जैसे पल दो पल का हवा का झोंका बनकर गुजर जाते है  ! धर्म-अर्थ काम तीनों पुरुषार्थ का उचित पालन करता हुआ यह परिवार प्रसन्नता पवित्रता से छल छल होता जीवन जी रहा है । दान-शील और तप उनके जीवन के श्रंगार…

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नदिया सा संसार बहे – भाग 4

एक दिन महाराजा ने सुरसुन्दरी को विदेशयात्रा के संस्मरण सुनाने का बहुत आग्रह किया । सुरसुन्दरी पहले तो आशंका से सहम गई, पर फिर उसने इस ढंग से सारी बातें कही ताकि महाराजा को अमरकुमार के प्रति तनिक भी अभाव या दुर्भाव न हो । यक्षद्वीप से लगाकर बेनातट नगर में वापस अमरकुमार का मिलन हुआ, वहां तक का सारा…

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नदिया सा संसार बहे – भाग 3

अमरकुमार ने अपने विदेशप्रवास की बातें की । बेनातट नगर के महाराजा गुणपाल के आग्रह से एवं सुरसुन्दरी के दबाव से गुणमंजरी के साथ कि हुई शादी की बात कही । राजा-श्रेष्ठि दोनों प्रसन्न हो उठे । ‘अमर, तूने महाराजा गुणपाल को चंपा पधारने के लिये निमंत्रण दिया या नही  ?’ ‘ओह,…. यह बात तो मेरे दिमाग से निकल ही…

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नदिया सा संसार बहे – भाग 2

रानी रतिसुन्दरी अपनी बेटी और जमाई को देखकर खुशी से झूम उठी । सुरसुन्दरी ने संक्षेप में गुणमंजरी का परिचय दिया । रतिसुन्दरी ने गुणमंजरी को अपने उत्संग में लेते हुए उसे वात्सल्य से सराबोर कर दिया । राजा-रानी को मिलकर तीनो धनावह श्रेष्ठि की हवेली पर जाने के लिये रथ में बैठे । हवेली के द्वार पर ही धनावह…

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नदिया सा संसार बहे – भाग 1

नदिया सा संसार बहे जब अमरकुमार के जहाज चंपा के निकट पहुँचे तब अमरकुमार ने एक जहाज को संदेश  देकर आगे भेजा, समाचार देने के लिये । संदेशवाहक ने चंपानगरी पहुँचकर महाराजा रिपुमर्दन और नगरश्रष्टि धनावह को अमरकुमार के आगमन का संदेश दिया । राजा और श्रेष्ठी दोनों समाचार सुनकर हर्ष से उत्फुल्ल हो उठे । राजा ने मंत्री को…

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