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फिर सपनों के दीप जले – भाग 5

‘ओह … मैंने इस श्रेष्ठि का परिचय तो पूछा ही नहीं सुन्दरी सोचने लगी। अरे … इसका नाम भी नहीं पूछा। वह मुझे कितनी अविवेकी समझेगा ? हां, पर मैं भी स्वार्थी ही हूँ न ? मेरा काम बन गया ,… तो नाम पूछने जितना विवेक भी भूल गयी। अब पूछ लुंगी … और उससे कोई काम हो तो करने…

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फिर सपनों के दीप जले – भाग 4

सुरसुन्दरी जहाज में आरूढ़ हो गयी । उसके पीछे श्रेष्ठि भी चढ़ गया। श्रेष्ठि ने सुरसुन्दरी को , अपने कक्ष से लगे हुए खण्ड को बताकर कहा : ‘यहां तुझे सुविधा रहेगी न ? इस खंड में तेरे अलावा और कोई नहीं रहेगा । यहां सब तरह की सुविधाएं है ।’ खंड छोटा था पर स्वच्छ था , सुन्दर था…

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फिर सपनों के दीप जले – भाग 3

सुरसुन्दरी भी चतुर थी । एक अनजान परदेशी के साथ समुद्री यात्रा के भ्यस्थान से वह परिचित थी । और फिर वह खुद पति बिना की युवती थी पुरुष की कमजोरी से वह भली भांति परिचित थी । इसलिये उसने श्रेष्टि से कहा : ‘आप यदि मुझे सिंहल द्विप तक ले चलेगे तो मै आपका उपकार नहीं भूलूंगी । पर…

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फिर सपनों के दीप जले – भाग 2

एक जहाज यक्षद्विप की ओर ही आ रहा था । सुरसुन्दरी का दिल हर्ष से उछलने लगा । एकाध घटिका में तो जहाज किनारे पर आ पहुँचा। फटाफट आदमी किनारे पर उतर कर आ गये । उन्हें मीठा जल भरना था । उन लोगों ने दूर खड़ी सुरसुन्दरी को देखा। देखते ही रह गये… वे जहाज में से उतर रहे…

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फिर सपनों के दीप जले – भाग 1

सुरसुन्दरी ने पहले उपवन में अपना थोड़े दिन का निवास स्थान बना दिया । यक्षराज ने एक छोटी सी पर्णकुटिर बना दी थी । सुरसुन्दरी अपना अधिकांश समय श्री नवकार मंत्र के जाप में व अरिहंत परमात्मा के ध्यान में ही बीताती थी । सुबह सुबह में नित्यत्रय से निपट कर वह समुद्र के किनारे पर चली जाती और दूर…

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