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अपूर्व महामंत्र – भाग 3

‘हां, मां। अमर उसकी मां की बात कभी नहीं टालता । पिता की आज्ञा का भी पालन करता है।’ लड़का प्रज्ञावान है….कलापूर्ण है….साथ ही गुणी भी है…वह यदि धर्मबोध प्राप्त कर लेगा तो उसके गुण चन्द्र – सूर्य की भांति दमक उठेंगे।’ अमरकुमार की प्रशंसा करते हुए और सुनते हुए सुरसुन्दरी पुलकित हो उठी । रतिसुन्दरी जानती थी अमरकुमार और…

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अपूर्व महामंत्र – भाग 2

‘परम उपकारी गुरुमाता, आज मैं धन्य हुई। आपकी कुपा से मैं कुतार्थ हुई। आपके पावन चरणों में बैठकर सर्वज्ञ – शासन के तत्वों का अवबोध प्राप्त करने के लिये मैं भाग्यशाली बन पाऊंगी। आपके इस उपकार को मैं कभी नहीं भूलूंगी। कुपा करके आप मुझे समय का निदेर्श दें ताकि आपकी साधना-आराधना में विक्षेप न हो और मेरा अध्ययन हो…

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अपूर्व महामंत्र – भाग 1

दूसरे ही दिन सुरसुन्दरी साध्वीजी सुव्रता के उपाश्रय में पहुँच गयी। उसने उपाश्रय में प्रवेश किया और साध्वीजी के चरणों में मस्तक झुका कर वंदना की। ‘धर्मलाभ ।’ साध्वीजी ने दाहिना हाथ ऊँचा कर के आशीवार्द दिया। सुरसुन्दरी , साध्वीजी की इजाजत लेकर विनयपूर्वक बैठकर अपना परिचय देते हुए बोली: ‘हे पूज्या, आपके दर्शन से मुझे अतीव आनन्द हुआ है।…

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