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“इस प्रधानमंत्री जैसा चरित्र सबका हो जाए तो देश चरित्रवान बन जाएगा”

मानव कि सम्पत्ति चली जाए तो भी वह कुछ भी खोता नही है कारण वह उसे पुनः प्राप्त कर सकता है, मानव कि स्वस्थाता को हानि पहुंचा तो भी वह एक बार उसे पुनः पा सकता है, परंतु मानव एक बार अगर चरित्र को खो दे तो यह समझना की उसने जीवन में सब कुछ खो दिया है। चरित्र एक बार खो देने के बाद वापिस नही मिल सकता है।
व्यक्ति का चरित्र तीन प्रकार का होता है।
१ जैसा वह स्वयं को समजता है।
२ जैसा अन्य लोग उसे समजते है।
३ जैसा वह वास्तविकता में लेता है।
इसलिए जगत की महान आशा व्यक्तिगत चरित्र पर ही बंधी है। मानव अगर ऐसा विचारे की मै अकेला चरित्रवान बनकर क्या करूँगा? तो यह ग़लत बात है। हर व्यक्ति अगर एसा विचारे तो देश चरित्रहीन बन जाएगा। और हर व्यक्तिमात्र स्वयं ही चरित्रवान बनने का ध्येय नक्की करेगा तो स्वयं समग्र देश चरित्रवान बन जाएगा।
एक महानुभाव साड़ियों की दुकान में गए तो उन्हें वह देखकर सभी ऊपर नीचे हो गये। दुकानदार को भी समज में नही आया की उनका किस तरह से स्वागत करे?
उसने दिल जान से स्वागत किया। फिर महाशय को साड़िया बताने को कहा।
दुकानदार ने उस ज़माने की महेंगी 800rs की साड़ी बताई महाशय ने उसकी क़ीमत पूछी, भाई क्या क़ीमत है इसकी?
जी क़ीमत को छोड़ो आप तो ले जाओ इसे!
नही तो भी कहो तो सही क्या क़ीमत है इसकी?
जी 800rs
बहुत महँगी है थोड़ी सस्ती बताओ दुकानदार ने फिर 400rs की साड़ी बताई। महाशय ने कहा मै ग़रीब आदमी हुँ। सामान्य आदमी हुँ। मुझे एकदम सस्ती 100rs वाली या 50rs वाली साड़ी बताओ।
दुकानदार हँसा और बोला सरकार क्यूँ हमारी मज़ाक़ उड़ा रहे है।
आप देश के पराधनमंत्री है। आप ग़रीब कैसे हो सकते है? दूसरी बात आपको यह साड़ी ख़रीदना नही है, मज़े भेंट देना है।
प्रधानमंत्री बोलो में आपके पास से एसे भेंट नही ले सकता हुँ। दुकानदार प्रेम से साहेब आप देश के लिए इतना कुछ करते है तो हमारे प्रधानमंत्री को भेंट देने क्या अधिकार नही है क्या?
प्रधानमंत्री ने कहा ‘आपकी बात साँची है आपको इस तरह से देने का हक़ है। परंतु इस तरह मुझे
लेने का हक़ नही है। आपका भाव है इसलिए मै ले सकता हुँ। मेरा चरित्र मुझे इस तरह करने से रोकता है। एक बार अगर मै मेरी हेसियत के बाहर की भेंट या ऊपहार लूँगा तो मुझे शौक लग जाएगा। और मेरा चरित्र दाग़ वाला हो जाएगा। मेरे लिए मेरे चरित्रयसे बढ़कर कोई चीज महत्व की नही है।
और अपनी बात पर अड़े रहे। उन्होंने भेंट को स्वीकार नही किया।
खड़के चरित्रय को बेदाग़ रखने के लिए सतत जागृत और प्रयन्तशील रहने वाले प्रधानमंत्री का नाम लाल बहादुर शास्त्री है।
एसे चरित्रवान राजनेता को नमन।

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