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बोध की रात

गांधीजी के जीवन में एक अनोखी घटना घटी।
काठियावाड़ (सौराष्ट्र -गुजरात का एक हिस्सा) का कोई एक गाँव था। किसी सभा को संबोधित करने के लिए उन्हें उस गाँव में जाना हुआ। जिनके घर उन्हें रुकना था, उस घर में जब उन्होंने प्रवेश किया तब उनके आंगन में निरा विचित्र कहा जा सके ऐसा बंदनवार बांधा हुआ था।
वह था तीखी मिर्च का बंदनवार। कुछ देर तो गांधीजी उस बंदनवार को देखते ही रहे। यजमान भी बिना कुछ बोले चुपचाप खड़े रहे।
जब गांधीजी की बेचैनी बढ़ गयी तो उन्होंने यजमान से कहा: *मेरी समझ में यह नही आ रहा है कि आपने मिर्ची का बंदनवार क्यों लगाया है? मैंने अपनी जिंदगी में ऐसा बंदनवार कभी देखा नही है। क्या मेरे स्वागत के लिए यह बंदनवार लगाया गया है??*
गांधीजी की जिज्ञासा को ऐसे चरमसीमा पर देखकर यजमान ने कहा: *बापू! है तो कुछ ऐसा ही। हम गांववालों ने इस प्रकार आपका अभूतपूर्व स्वागत करने का निर्णय किया है।* गांधीजी ने पूछा: पर क्या उसकी कोई वजह है?
*हाँ बापू! बिना वजह यो कहाँ कोई कार्य होता है? आप हमारी बात शांति से सुनिये।*
बात कुछ ऐसी है कि विगत कुछ समय से अखबारों में छपते आपके व्याख्यान पढ़कर हमारे मन पर ऐसा असर हुआ है कि आप अपनी वाणी में अतिरेकी, अनुचित मिठास का प्रयोग करने लगे है। वह जमाना अब इतनी मिठास का नही रहा है। यह जमाना मौका पड़ने पर तीखा होना पडे ऐसा है। आपको यह बात समझाने के लिए हमनें तीखी मिर्च का बंदर्वर लगाया है।
गांववालों की बोध देने की इस अनोखे ढंग से गांधीजी बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने कहा कि ठीक है, अब हमारे प्रवचन सुनना। कितना तीखापन और कटुता होती है, यह अनुभव करना। समय आने पर तीखा होना मुझे भी आता है, हाँ।

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