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भेरुशा की कैसी करुणा

भारत पर आक्रमण कर विजयी हुए हुमायू नौहज़ार भारतीयो को कैद कर लिया।
उसने अपने निजी लोगो से कहा कि *इन सारे कैदियो को विदेश ले जाओ पर रास्ते में
उनको इतना आतंकित कर देना ,इतना तंग करना की वे मेरे वतन तक पहुँचते पहुँचते
मर जाये।*
बादशाह की बात का अमल शुरू हुआ। रास्ते में भेरूशा नामक एक जैन
का गाँव पड़ता था। कोड़ो की मार मारते हुए पशुओं से भी बदतर रूप में उन
युद्धकैदियो ले जाते हुए देखकर भेरूशा का दिल रोने लगा।
उसने बहुत अनुनय-विनय करके उस काफिले को अपने गाँव में रुकवा दिया।
बाद में खूब नजराना लेकर वह दिल्ली पहुंचा। उसने हुमायू के चरणों में वह विपुल
धनराशि रख दी।
प्रशन्न हुए हुमायू ने कहाँ- यह सब किस लिए? तुम्हे क्या चाहिए??
भेरूशा ने कहाँ की एक कोरे कागज पर आपके हस्ताक्षर। मै उसका ऐसा उपयोग
करूँगा जिससे आपकी प्रतिष्ठा को चार चांद लग जायेंगे।
हुमायू ने हस्ताक्षर करके भेरूशा को वह कागज दिया। उसमे भेरूशा
ने लिखा* नौहज़ार कैदियो को सम्मानपूर्वक मुक्त कर दिया जाये।
यह कागज लेकर भेरूशा अपने वतन गया। उस हुक्म के आधार पर कैदियो को
मुक्त कर दिया गया और तब उन्होंने बादशाह की महरबानी मानकर उसके नाम का
गगनभेदी जयकारा बुलाया। इस प्रकार अविरत जयकारा करते हुए अपने अपने वतन पहुंचे
गए।
बादशाह को जब इस बात का पता चला तब वह भी अति प्रसन्न हुए।

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