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“विचार अपवित्र बनते है तब आचार भी अपवित्र बन जाता है चलो विचारो की care करे”

विचार वह मन में उढते तरंग जैसे है तरंग दीपक की ज्योति जैसी भी होती है और प्राण को निकाल दे ऐसी बिजली जैसी भी होती है। मन में विचार उत्पन्न होना , ये एक फिक्स बात है। परन्तु विचार कैसे होंगे उसका आधार मानव पर ही है।
मानव अच्छे विचार भी कर सकता है और बुरे विचार भी कर सकता है। स्वयं के स्वार्थ के लिए मानव मन को काम में लगता है तब मन में ख़राब विचार ही आते है। ख़राब विचार कभी भी मानव को जीतने नही देते है।
विचार जब अपवित्र बनते है तब आचार भी अपवित्र बन जाता है। मानव गुनाह करने के लिए प्रेरित होता है। दुनिया में जितने भी गुनहगार है वे दूसरों के कारण नही बने है। मानव का मन जब ख़राब होता है और उसे किसी को मारने का विचार आता है तो वह मार देता है। मानव के मन में रेप का विचार आता है और वह कर भी देता है। चोरी का विचार आता है और ये भी कर लेता है। मित्र के साथ धोखा करने का विचार आया तो धोका दे देता है।
मानव के विचार अगर खराब होंगे तो धरातल का विनाश करेंगे।और मानव के विचार अच्छे होंगे तो समाज का सर्जन करेंगे।
विचार ने मानव की जिंदगी बदल दी है। वह विचार कोई रास्ते में नही पड़ा है। मानव विचारने बैठे और तुरंत ही क्रिएटिव विचार आये ऐसा नही है। सृष्टि को बदलने विचारो में अनेक विचार पुरुषों ने स्वयं की जिंदगी बदल कर रख दी है। समग्र जीवन उन्होंने विचार किया तब जा कर एक अच्छा विचार आया। फिर उसका अमलीकरन करने में कितने ही वर्ष लग गए। इसलिए जगत को बदलने वाले विचार अधिकतर समय मांगते है।
कितना ही धीरजहिन लोक विचार ने में और विचारो के अमलीकरण में बहुत ही जल्दबाज़ी करते है। इन लोगो को आज विचार करना है। और कल अमल में रखना है। ऐसा शायद एक दो व्यक्तियो के लिए शायद शक्य हो सकता है। समग्र समाज के लिए ऐसा करना शाक्य नही है।
विचार खूब विचार कर करो। जो मन में आया वह सब श्रेष्ठ नही होता है। जो मन में आया वे सब क्रिएटिव भी नही होता है। उसकी अच्छी और ख़राब, सब बातें चेक करो।

*विचार शून्यता वर्तमान की सबसे बड़ी आपत्ति है।*

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